Not known Factual Statements About सूर्य पुत्र कर्ण के बारे में रोचक तथ्य

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मुख्य लेख: सौर मंडल का गठन और विकास और तारों का विकास

दुर्योधन के साथ शान्ति वार्ता के विफल होने के पश्चात, श्रीकृष्ण, कर्ण के पास जाते हैं, जो दुर्योधन का सर्वश्रेष्ठ योद्धा है। वह कर्ण का वास्तविक परिचय उसे बतातें है, कि वह सबसे ज्येष्ठ पाण्डव है और उसे पाण्डवों की ओर आने का परामर्श देते हैं। कृष्ण यह विश्वास दिलाते हैं कि चूँकि वह सबसे ज्येष्ठ पाण्डव है, इसलिए युधिष्ठिर उसके लिए राजसिंहासन छोड़ देंगे और वह एक चक्रवती सम्राट बनेगा।

कर्ण की मृत्यु के सम्बन्ध में निम्नलिखित कारक गिनाए जा सकते हैं:



जिसमे अर्जुन धनुर्धन प्रभावित हुए, अर्जुन के कारनामे को पार करते हुए तभी कर्ण ने अर्जुन को एक द्वन्दवयुद्ध की चुनौती दी, परन्तु कृपाचार्य ने ये कह कर चुनौती ठुकरा दी की राजकुमार को सिर्फ एक राजकुमार ही चुनौती दे सकता है

तब श्रीकृष्ण उसे आशीर्वाद देते हुए बोले- ” कर्ण जब तक सूर्य, चन्द्र, तारे और पृथ्वी रहेगी, तुम्हारी दानवीरता का गुणगान तीनों लोकों में किया जाएगा.

वेद क्या है ? इनकी रचना किसने की ? वेद कितने है ?

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पृष्ठ जिनमें अमान्य प्राचलों के साथ उद्धरण हैं

उनकी सेवा भावना से महर्षि दुर्वासा बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने राजकुमारी कुंती को “ वरदान स्वरुप एक मंत्र दिया और कहा कि वे जिस भी देवता का नाम लेकर इस मंत्र का जाप करेंगी, उन्हें पुत्र की प्राप्ति होगी और उस पुत्र में उस देवता के ही गुण विद्यमान होंगे.” इसके बाद महर्षि दुर्वासा कुंती राज्य से प्रस्थान कर गये.

जिस समय महर्षि दुर्वासा ने राजकुमारी कुंती को यह वरदान दिया था, उस समय उनकी आयु अधिक नहीं थी और इस कारण वे इतनी समझदार भी नहीं थी. अतः उन्होंने महर्षि दुर्वासा द्वारा प्राप्त वरदान का परिक्षण करना चाहा और उन्होंने भगवान सूर्य का नाम लेकर मंत्र का उच्चारण प्रारंभ किया और कुछ ही क्षणों में एक बालक राजकुमारी कुंती की गोद में प्रकट हो गया और जैसा कि ऋषिवर ने वरदान दिया था कि इस प्रकार जन्म लेने वाले पुत्र में उस देवता के गुण होंगे, यह बालक भी read more भगवान सूर्य के समान तेज लेकर उत्पन्न हुआ था.

कोणार्क सूर्य मंदिर, अद्भुत शिल्पकारी का नमूना

महाभारत के अद्भुत यौद्धा कर्ण को कई नामों से जानते है जैसे वासुसेन,दानवीरकर्ण, राधेय, सूर्यपुत्र, सूतपुत्र , कौंत्य , विजयधारी , वैकर्तना, मृत्युंजय , दिग्विजयी, अंगराज आदि.

उसी स्थान पर, भीम द्वारा यह प्रतिज्ञा ली जाती है कि वह अकेले ही युद्ध में दुर्योधन और उसके सभी भाईयों का वध करेगा। और फिर अर्जुन, कर्ण का वध करने की प्रतिज्ञा लेता है क्योंकि कर्ण दुर्योधन के पक्ष में थे। सैन्य अभियान[संपादित करें]

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